जो ब्लॉगर अपने लिखे शब्दों से प्यार करते हैं, उनके लिये सूचना!
आपको यह जानकर शायद अच्छा लगे कि आर्ट ऑफ़ रीडिंग में हम एक नया फ़ीचर जोडने जा रहे हैं.
हमने यह ब्लॉग बनाया ही इसलिये है कि आप छपे हुए शब्दों की ध्वन्यात्मक सुंदरता से दो चार हो सकें. इस दिशा में हम अपनी कारोबारी व्यस्तताओं और प्रोडक्शंस के थकाऊ चक्करों के बीच अपने मन की तरंग का काम उसी तरह करते रहेंगे जैसा आप अभी तक देखते-सुनते आए हैं. हमें अपनी साहित्यिक धरोहर के अनमोल मोतियों से दिली लगाव है और नितांत निजी कारणों और रुचियों से हम इस ख़ज़ाने के मोती आपके सामने रखते रहेंगे. संयोग से ये आपको भी अच्छे लगेंगे तो हम समझेंगे कि "हमारी और आपकी राय कितनी मिलती-जुलती है!"
हाँ तो मैं एक नये फ़ीचर की बात कर रहा था. दरअस्ल ये नया फ़ीचर हमारे आपके प्यारे क़िस्सागो मुनीश मयख़ानवी के दिमाग़ की उपज है. हम दोनो एक दोपहर पीपल के एक पेड के नीचे सिगरेट से धुआँ उडाते हुए इस बात पर सहमत हुए कि यार लोग इतनी अच्छी-अच्छी पोस्टें अपने-अपने ब्लॉग्स पर लिखते हैं लेकिन कई बार ब्लॉग परिवार में मची हलचलों या ऐसे ही कुछ नामाक़ूल कारणों से वो पोस्टें इतनी तवज्जो नहीं हासिल कर पातीं, जिनकी वो हक़दार होती हैं, तो क्यों न हम ऐसी पोस्टों को चुनें और उन्हें आर्ट ऑफ़ रीडिंग में पॉडकास्ट की शक्ल में पेश करें!
तो अब तक की तय स्कीम के मुताबिक़ हम आज के ही दिन, यानी संडे को ऐसे पॉडकास्ट जारी करेंगे जो सीधी भाषा में कहें तो आपमें से ही चुने हुए ब्लॉगर साहबान की किसी पोस्ट की ध्वन्यात्मक प्रस्तुति होगी.
तो उम्मीद कीजिये कि आप अगले हफ़्ते आज के ही दिन अपनी किसी पोस्ट को सुन रहे होंगे, लेकिन फ़िलहाल मुनीश से सुनिये उर्दू अफ़सानानिगार रामलाल का अफ़साना अंधेरे से अंधेरे की तरफ़. अवधि साढे सात मिनट.
हमने यह ब्लॉग बनाया ही इसलिये है कि आप छपे हुए शब्दों की ध्वन्यात्मक सुंदरता से दो चार हो सकें. इस दिशा में हम अपनी कारोबारी व्यस्तताओं और प्रोडक्शंस के थकाऊ चक्करों के बीच अपने मन की तरंग का काम उसी तरह करते रहेंगे जैसा आप अभी तक देखते-सुनते आए हैं. हमें अपनी साहित्यिक धरोहर के अनमोल मोतियों से दिली लगाव है और नितांत निजी कारणों और रुचियों से हम इस ख़ज़ाने के मोती आपके सामने रखते रहेंगे. संयोग से ये आपको भी अच्छे लगेंगे तो हम समझेंगे कि "हमारी और आपकी राय कितनी मिलती-जुलती है!"
हाँ तो मैं एक नये फ़ीचर की बात कर रहा था. दरअस्ल ये नया फ़ीचर हमारे आपके प्यारे क़िस्सागो मुनीश मयख़ानवी के दिमाग़ की उपज है. हम दोनो एक दोपहर पीपल के एक पेड के नीचे सिगरेट से धुआँ उडाते हुए इस बात पर सहमत हुए कि यार लोग इतनी अच्छी-अच्छी पोस्टें अपने-अपने ब्लॉग्स पर लिखते हैं लेकिन कई बार ब्लॉग परिवार में मची हलचलों या ऐसे ही कुछ नामाक़ूल कारणों से वो पोस्टें इतनी तवज्जो नहीं हासिल कर पातीं, जिनकी वो हक़दार होती हैं, तो क्यों न हम ऐसी पोस्टों को चुनें और उन्हें आर्ट ऑफ़ रीडिंग में पॉडकास्ट की शक्ल में पेश करें!
तो अब तक की तय स्कीम के मुताबिक़ हम आज के ही दिन, यानी संडे को ऐसे पॉडकास्ट जारी करेंगे जो सीधी भाषा में कहें तो आपमें से ही चुने हुए ब्लॉगर साहबान की किसी पोस्ट की ध्वन्यात्मक प्रस्तुति होगी.
तो उम्मीद कीजिये कि आप अगले हफ़्ते आज के ही दिन अपनी किसी पोस्ट को सुन रहे होंगे, लेकिन फ़िलहाल मुनीश से सुनिये उर्दू अफ़सानानिगार रामलाल का अफ़साना अंधेरे से अंधेरे की तरफ़. अवधि साढे सात मिनट.
Comments
aap ki pahli hi prastuti bahut achcheehai...train ki awaz --aur manish ji ki damdaar,clear awaz ne lekh mein jaan daal di hai...bahut hi achchee recording aur prastuti hai.
Irfaan ji manish ji aur ramlal ji ko badhayee.
aagey ke podcasts ka intzaar rahega.
shubh kamnayen..
alpana verma
क्या आईडिया लाए हो साहिब, मान गए!
ये प्रयोग निश्चय ही एक बहुत बड़ा हिट और सबके लिए हित का साबित होगा.
Please check the track again, it is satisfactory I beleive.
best wishes irfan bhai.