काकी


हमारा साहित्य कई कालजयी रचनाओं से भरा पडा है. मानवता की करुण दास्तानें और उनकी निर्दोष अभिव्यक्तियों की बानगियाँ चप्पे-चप्पे पर दर्ज हैं. रेडियो रेड समय-समय पर इन्हीं रचनाओं का महत्व और उत्सव रेखांकित करता रहता है. इसी क्रम में आज पेश है सियारामशरण गुप्त की शॉर्ट स्टोरी काकी. आवाज़ है हमारी सहकर्मी राखी की.


अवधि: लगभग 5 मिनट

Comments

उम्दा प्रस्तुति!
बचपन में पाठ्यपुस्तकों में ये कहानी पढी थी, आज सुनकर बहुत अच्छा लगा।
Unknown said…
बहुत सुन्दर प्रस्तुति... । कहानी सुनते हुये रोंगटे खड़े हो गये ..... बहुत बढ़िया...। आती रहूंगी ....

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