क्या तुमने कभी कोई सरदार भिखारी देखा?
पिछले दिनों मैंने स्वयं प्रकाश की यह कहानी आपसे माँगी थी. हमारे ब्लॉगर साथी मोहन वशिष्ठ ने इसे मुझे मुहैया कराया है. उनके प्रति आभार व्यक्त करते हुए यह कहानी उन्हें ही सादर भेंट की जाती है. कोई दस साल पहले जब सहमत ने सांप्रदायिकता विषयक कहानियों का एक संग्रह छापा तभी इस कहानी पर मेरी नज़र गई थी. इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद मचे क़त्ल-ए-आम की यह दस्तावेज़ी कहानी है. कई मायनों में यह एक समकालीन कहानी, मानवता के संकटों को सामने लाती है। Part-1 10 min approx Part-2 10 Min approx स्वर इरफ़ान का है और साथ में हमारे साथी मुनीश इसे कई जगहों पर प्रभावकारी बना रहे हैं। अवधि लगभग बीस मिनट.
Comments
वर्ना हमारे जैसे फोकटिया सुधीजनों की कमी नहीं है...कहने का तात्पर्य ये है कि आपका काम प्रोफेशनल है लेकिन पइसा माँगते ही लोग...साहित्य को दूर तक पहुँचाने में साहित्य का आपका चयन मेरी पसंद से अलग होगा इसका अंदेशा नहीं है इसलिए आपसे उम्मीद करने में कोई ख़ास जोखिम नहीं है.
आपकी मेहनत और रंग लाए, यही शुभकामना है.
मैंने गूँज थोडी कम की है. गूँज हटाऊँगा नहीं हालाँकि यूनुस भाई ने भी शिकायत की है. एक बार फिर सुनिये और रिपोर्ट दीजिये.
@उडन तश्तरी: धन्यवाद
@ अनामदास: भाई हिम्मत बँधी.