संडे स्पेशल:आज सुनिये सुखदेव साहित्य से पीढियों का लुत्फ़



"मेरी उम्र छियासी हो चुकी है.मैं साहित्यसेवी हूं.मेरी रचनाएँ यहां हैं.आप की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी."
सुखदेवजी ने अपने प्रोफ़ाइल में भले ही यह संक्षिप्त सा परिचय दिया है लेकिन उनके अनुभव और उनसे मिलने वाली रोशनी को शायर के शब्दों में यूँ कहना होगा-


एक बूढा रह रहा इस शहर में या यूँ कहें
एक सूने घर में जैसे कोई रोशनदान है


मैं छियासी वर्षीय सुखदेवजी को महज़ अजय ब्रह्मात्मज के पिता के रूप में प्रस्तुत करना उनकी मौलिकता और रचनात्मक उत्साह का उपहास मानता हूँ . ख़ुद उनके ही शब्दों में कहना हो तो शायद कहा जाएगा- तुम क्या खाकर वह लिखोगे जो मैं भोगकर लिख रहा हूँ. लम्बे समय से ब्लॉगजगत में पूरे उत्साह से लगे सुखदेव साहित्य का रुख़ करना जो लोग हेय समझते हैं उनके लिये भी आज पेश है-

पीढियों का लुत्फ़


स्वर मुनीश का हैअवधि कोई पाँच मिनट

Comments

Anonymous said…
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Anonymous said…
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Anonymous said…
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Anonymous said…
This topic have a tendency to become boring but with your creativeness its great.
अच्छी झलकी सुनवाई...बहुत बढिया।
Udan Tashtari said…
बहुत बढ़िया.

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