सन्डे स्पेशल में आज : मोहन थाल


ब्लॉगर निशा की दिशा जरा अलग है जो आपको खोजनी नहीं पड़ती बल्कि भरवां बैंगन, भुने मावे या खड़े मसाले की महक से आप ख़ुद -ब-ख़ुद उस तरफ खींचे चले जाते हैं. इस बार एक अद्भुत चमत्कारी व्यंजन मोहन थाल की सोंधी बेसनी महक हमें निशा मधुलिका जी के ब्लॉग पर बरबस ही खींच लायी है. फिल्म दीवार में विजय ,रवि से कहता है,'' तुम्हारे सब उसूलों को गूंध कर दो वक़्त की रोटी नहीं बनाई जा सकती रवि''। इसी तरेह बाकी सब ब्लोग्गरों की लफ्फाज़ी से कुल मिलाकर ऐसा कुछ हासिल नहीं हो सकता जैसा निशा जी की व्यंजन विधियों से जिन्हें वाकई देखा, चखा और महसूसा जा सकता है. चाहता था खुद ये पोस्ट पढूं मगर भावुकता के अतिरेक में पढ़ नहीं पा रहा था इसलिए इरफान से आग्रह किया। सो आप सुनें मोहन थाल बनाने का तरीका, जय श्री कृष्ण:




जिन हज़रात को को इस डिश के चमत्कारी होने पे शक हो वो ईश्वर के जिस भी रूप को मानते हों उसका नाम ले कर ये डिश बनायें और अपनों-परायों दोनों में बाँट दें और अपना शक दूर कर लें.

Comments

बहुत बहुत धन्यवाद मुनीश भाई;
पढ़ने तो रहते ही हैं सुनने का मज़ा खास ही है.
नाम सुना था मोहन थाल का, आज बनाने का तरीका भी जान लिया, जानकारी के लिऐ धन्यवाद।
Udan Tashtari said…
वाह जी, पाक कला की इस तरह प्रस्तुति-मन प्रफुल्लित हो गया. बहुत खूब.
Irfan ji ki aawaz mei ye prastuti mano sajeev ho gayee hai--
ये हुई ना बात !!
.."मोहन थाल"
मुझे भी बहुत पसँद है
- मनमोहन श्याम सुँदर,
उससे भी कहीँ गुना ज्यादा...
-लावण्या
sanjay patel said…
मोहनथाल का बखान पढ़
मुँह में पानी आ गया.
वैसे इस व्यंजन को हमारे
यहाँ मालवा में चक्की
बोलते हैं.
मन श्रीनाथजी के धाम
नाथद्वारा पहुँच गया जहाँ
का प्रसाद मोहनथाल
का ही तो आनंद देता है.
जय श्रीकृष्ण.
दीपक said…
हम पुरे भेज है और यहा नन्भेज के चक्कर मे खाना बनाने की पहलवानी खुद करनी पढ रही है उन्नीस बार दाल जल चुकी है चावल लाख उबाले जाने पर भी अपनी प्राकृतिक अवस्था मे ही रहता है !! अब ऐसे मे कैसे बनेगी मोहन थाल ?

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