गोली दाग़ो पोस्टर
लीजिये सुनिये आलोकधन्वा की एक प्रतिनिधि कविता- गोली दाग़ो पोस्टर.
हालाँकि मेरा मानना है कि इसका सबसे अच्छा पाठ ख़ुद आलोकधन्वा ही कर सकते हैं लेकिन हमारे साथी अश्विनी वालिया ने कोशिश की है कि इसके पाठ के साथ न्याय किया जा सके. कितना न्याय हो सका है और हमारी पेशकश कैसी लगी, यह जानने की उत्सुकता रहेगी.
अवधि कोई पाँच मिनट.
गोली दाग़ो पोस्टर
Comments
कमाल की पेशकश है इरफान भाई (और साथी). जारी रखें.
रचना पर तो ख़ैर क्या कहूं ... अश्विनी जी ने गज़ब कर दिया है. बधाई.
बहु अच्छा किया आपने, कविता सुनते हुए सिहरन सी हुई कई बार, सफेद रात कविता भी दीएिज इसी तरह - शुक्रिया
बहु अच्छा किया आपने, कविता सुनते हुए सिहरन सी हुई कई बार, सफेद रात कविता भी दीएिज इसी तरह - शुक्रिया
सबकुछ अदभुत.
waise to main apka murid hun par
is kavita ko is rup men sunkar mayus hoon.
apne alok da ko agar yah kavita padhte suna ho
to uske samne yah gustakhi ke alava aur kuch nahin.
पहली बार आया यहाँ। बहुत अच्छा लगा। पूरा खज़ाना है। अभीतक 3 ही पोस्ट सुने हैं, बाकी ज़ारी हैं। आपका मुरीद हुआ।
बरसों पहले देखे पीयूष मिश्रा के एक मोनोलोग नाटक की याद हो आई। मज़े की बात कि उसी दिन आलोक धन्वा जी से पहली और अबतक की आखरी मुलाकात हुई थी।
शुभम।