सन्डे स्पेशल में आज सुनिए ; हारमोनियम
पिछले संडे हम हाज़िर न हो सके तो उसकी वजह महज़ वो बदमज़गी नहीं थी जो कुछ वरिष्ठ और बेहद गरिष्ठ ख़ानसामों ने पैदा की थी, और न ही वो एक्सीडेंट जिसमें मैं मर भी न सका, न तो ये कि भाई मुनीश शनीचर की शाम घंटों मुझे आवाज़ देते रहे और मैं कान में रुई डाले पडा रहा, न ये कि हमारे ब्रॉडबैंडवालों ने हमें ब्लॉगिंग से वंचित रखने की कामयाब कोशिश की, और न तो ये हम आपके रिस्पॉंसेज़ से संतुष्ट नहीं हैं.
असल में घुमक्कडी की पुरानी हूक हमें सोहना के पास एक खूबसूरत पहाडी झरने तक ले गई जहाँ हम मौसमी बहारों का लुत्फ़ लेने में इतने मुलव्विस थे कि हमें अपने वादे तक की याद न रही. फिर सोने में सुहागा ये कि वहाँ हम निशा मधूलिका के सिखाए पालक के पकौडों का ज़ायक़ा लेते रहे. हालाँकि हमारे मोबाइल ऑन थे और संडे स्पेशल के मद्दाहों के एसएमएस भी आते रहे जिन्हें हम बेदर्दी से डीलिट करते रहे. आख़िर हम अपने मन की तरंग के लिये ही तो ये अगडम-बगडम पोस्टें पब्लिश करते रहते हैं! सच कहें इस दौरान हमें ब्लॉगिंग से दूर रहने का कोई मलाल तो दूर ज़रूरत भी नहीं रही. ये ज़रूर हुआ कि इन्हीं एसएमएसेज़ में से एक में हमें नौकरी से निकाल देने की धमकी भी मिली. कहा गया था कि 'आर्ट ऑफ़ रीडिंग में अब तक की आपकी सेवाओं का सम्मान करते हुए भी आप लोगों को जॉब से हटाया जाता है और हम अब गोभी पुलाव वालों को हायर कर रहे हैं.'
ऐसी चेतावनियाँ शायद हमारा इम्तेहान लेने के लिये दी जाती हैं और इस बार भी हम इम्तेहान में फ़ेल नहीं हुए. लौटकर ब्लॉगपुरोहित अशोक पांडे की एक पोस्ट पर नज़र गई. हम कई मामलों में उनकी राय की अनदेखी नहीं कर पाते और ज़्यादातर सुझावों को क़ाबिल-ए-क़द्र समझते हैं, सो हमने इस बार अनिल यादव के हारमोनियम से उनकी ताज़ा पोस्ट और ब्लॉगविवेचन कौमुदी से एक हिस्सा आपके लिये तैयार किया है.
ब्लॉगविवेचन कौमुदी से एक हिस्सा
स्वर: इरफ़ान और मुनीश
एक यात्रा की याद
स्वर: मुनीश
असल में घुमक्कडी की पुरानी हूक हमें सोहना के पास एक खूबसूरत पहाडी झरने तक ले गई जहाँ हम मौसमी बहारों का लुत्फ़ लेने में इतने मुलव्विस थे कि हमें अपने वादे तक की याद न रही. फिर सोने में सुहागा ये कि वहाँ हम निशा मधूलिका के सिखाए पालक के पकौडों का ज़ायक़ा लेते रहे. हालाँकि हमारे मोबाइल ऑन थे और संडे स्पेशल के मद्दाहों के एसएमएस भी आते रहे जिन्हें हम बेदर्दी से डीलिट करते रहे. आख़िर हम अपने मन की तरंग के लिये ही तो ये अगडम-बगडम पोस्टें पब्लिश करते रहते हैं! सच कहें इस दौरान हमें ब्लॉगिंग से दूर रहने का कोई मलाल तो दूर ज़रूरत भी नहीं रही. ये ज़रूर हुआ कि इन्हीं एसएमएसेज़ में से एक में हमें नौकरी से निकाल देने की धमकी भी मिली. कहा गया था कि 'आर्ट ऑफ़ रीडिंग में अब तक की आपकी सेवाओं का सम्मान करते हुए भी आप लोगों को जॉब से हटाया जाता है और हम अब गोभी पुलाव वालों को हायर कर रहे हैं.'
ऐसी चेतावनियाँ शायद हमारा इम्तेहान लेने के लिये दी जाती हैं और इस बार भी हम इम्तेहान में फ़ेल नहीं हुए. लौटकर ब्लॉगपुरोहित अशोक पांडे की एक पोस्ट पर नज़र गई. हम कई मामलों में उनकी राय की अनदेखी नहीं कर पाते और ज़्यादातर सुझावों को क़ाबिल-ए-क़द्र समझते हैं, सो हमने इस बार अनिल यादव के हारमोनियम से उनकी ताज़ा पोस्ट और ब्लॉगविवेचन कौमुदी से एक हिस्सा आपके लिये तैयार किया है.
ब्लॉगविवेचन कौमुदी से एक हिस्सा
स्वर: इरफ़ान और मुनीश
एक यात्रा की याद
स्वर: मुनीश
Comments
shumal inshaN, junoob rahmaN !!
lo chaar soo main, hain ahle eemaN !
bacha hai markaz, vahaN pe irfaN !!
-Bura na maniyeha ke hum aapke qayal ho gaye irfan saheb.
Khoob hai, baakhoob hai.
बहुत मजेदार आनन्ददायक !!!
ख़ैर वो जो भी हो, ये सुन्दर है बहुत. वाचकद्वय को मेरा भी साधुवाद.
इसकी ध्वनि रूक-रूक कर सुनाई पङती है। इसे अबाधित सुनाइ देने के लिए प्रयास किया जाय।
हरि ऊँ
-- भोला भगत
अभी मेरी नजर गई और अपनी सबसे अच्छी पैंट को गुलूबंद की तरह इस्तेमाल होते पाया।
हे आर्ट आफ रीडिंग तुम्हें पुच्ची। इरफान भाई, मुनीश शुक्रिया बिना किसी आर्ट वाला।
या मौला तूने मुझे किस बियाबान में पटक छोड़ा है। यहां मेरे सफर का तस्करा चल रहा है और मुझे किसी ने बताया तक नहीं। यह संचार क्रांति कब मुझे भर आंख देख कर मुस्कराएगी। अगर ऐसा हुआ सेटेलाइट बाबा के चौरे पर सवा मन प्रगतिशील विचार चढ़ाऊंगा।
अनिल