ज्ञानरंजन के कबाड़खाने से उपन्यास अंश के अंश

अशोक पांडे का इसरार टाला न जा सका । हम ख़ुद भी ज्ञानरंजन जी के प्रशंसकों में हैं। जब से कबाड़खाना पढा है तब से ही इस उपन्यास अंश के दीवाने हैं । सुनिए और बताइये कि पाठ के साथ कितना न्याय हो सका?
ज्ञानरंजन के कबाड़खाने से उपन्यास अंश के अंश। स्वर इरफ़ान

Comments

Ashok Pande said…
मेरी बात का मान रखने का बहुत बहुत धन्यवाद इरफ़ान! ज्ञानजी की यह ज़रूरी किताब अब और ज़्यादा आम पाठकों द्वारा नोटिस की जाएगी. बहुत बहुत धन्यवाद.

उम्दा पेशकश.
दीपक said…
सहज भाषा मे कितना अच्छा चित्रण है घर बचपन और मोहल्ले का ॥आपकी आवाज मधुर है

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