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Showing posts from July, 2008

संडे स्पेशल: आज सुनिये लपूझन्ने का बचपन और कर्नल रंजीत

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मैंने पहले भी कहा है कि लपूझन्ना मेरा पसंदीदा ब्लॉग है. इसमें न तो कोई मुझसे सफ़ाई माँग सकता है और न ही यह आरोप लगा सकता है कि हम अपनी यारी निभाते हुए ये भूल रहे हैं कि इस पोस्ट से भी अच्छी कई पोस्टें हैं जो इस पर भारी हैं और हम संडे स्पेशल में उन्हें नज़र अंदाज़ कर रहे हैं. अब तो हम इन बातों पर कान भी नहीं देते क्योंकि आख़िरकार आर्ट ऑफ़ रीडिंग हमारे मन की तरंग है और इसमें हम अपने वक़्त और पूँजी का ख़ासा ख़सारा कर रहे हैं. पिछले हफ़्ते हमें अपनी व्यस्तताएँ ज़्यादा प्यारी रहीं क्योंकि हमें अपने बिल भी तो चुकाने होते हैं। कर्नल रंजीत और विज्ञान के पहले सबक़

सुनिये अमृता प्रीतम की "रसीदी टिकट" से एक हिस्सा

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अमृता प्रीतम हर किसी की ज़िंदगी के एक मोड पर कहीं न कहीं शामिल होती हैं और कुछ अनचीन्हा सा छोड जाती हैं या कहें जोड जाती हैं. पेश करता हूँ "रसीदी टिकट" से एक हिस्सा. Voice and presentation: Irfan Dur: 10 Min Approx

ज्ञानरंजन के कबाड़खाने से उपन्यास अंश के अंश

अशोक पांडे का इसरार टाला न जा सका । हम ख़ुद भी ज्ञान रंजन जी के प्रशंसकों में हैं। जब से कबाड़खाना पढा है तब से ही इस उपन्यास अंश के दीवाने हैं । सुनिए और बताइये कि पाठ के साथ कितना न्याय हो सका? ज्ञान रंजन के कबाड़खाने से उपन्यास अंश के अंश। स्वर इरफ़ान ।

सन्डे स्पेशल में आज सुनिए ; हारमोनियम

पिछले संडे हम हाज़िर न हो सके तो उसकी वजह महज़ वो बदमज़गी नहीं थी जो कुछ वरिष्ठ और बेहद गरिष्ठ ख़ानसामों ने पैदा की थी, और न ही वो एक्सीडेंट जिसमें मैं मर भी न सका, न तो ये कि भाई मुनीश शनीचर की शाम घंटों मुझे आवाज़ देते रहे और मैं कान में रुई डाले पडा रहा, न ये कि हमारे ब्रॉडबैंडवालों ने हमें ब्लॉगिंग से वंचित रखने की कामयाब कोशिश की, और न तो ये हम आपके रिस्पॉंसेज़ से संतुष्ट नहीं हैं. असल में घुमक्कडी की पुरानी हूक हमें सोहना के पास एक खूबसूरत पहाडी झरने तक ले गई जहाँ हम मौसमी बहारों का लुत्फ़ लेने में इतने मुलव्विस थे कि हमें अपने वादे तक की याद न रही. फिर सोने में सुहागा ये कि वहाँ हम निशा मधूलिका के सिखाए पालक के पकौडों का ज़ायक़ा लेते रहे. हालाँकि हमारे मोबाइल ऑन थे और संडे स्पेशल के मद्दाहों के एसएमएस भी आते रहे जिन्हें हम बेदर्दी से डीलिट करते रहे. आख़िर हम अपने मन की तरंग के लिये ही तो ये अगडम-बगडम पोस्टें पब्लिश करते रहते हैं! सच कहें इस दौरान हमें ब्लॉगिंग से दूर रहने का कोई मलाल तो दूर ज़रूरत भी नहीं रही. ये ज़रूर हुआ कि इन्हीं एसएमएसेज़ में से एक में हमें नौकरी से निकाल देने की धमकी

काँटे और याद

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सुनिये त्रिलोचन की एक कविता "काँटे और याद" । आवाज़ रजनीश मिश्र की है.

क्या तुमने कभी कोई सरदार भिखारी देखा?

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पिछले दिनों मैंने स्वयं प्रकाश की यह कहानी आपसे माँगी थी. हमारे ब्लॉगर साथी मोहन वशिष्ठ ने इसे मुझे मुहैया कराया है. उनके प्रति आभार व्यक्त करते हुए यह कहानी उन्हें ही सादर भेंट की जाती है. कोई दस साल पहले जब सहमत ने सांप्रदायिकता विषयक कहानियों का एक संग्रह छापा तभी इस कहानी पर मेरी नज़र गई थी. इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद मचे क़त्ल-ए-आम की यह दस्तावेज़ी कहानी है. कई मायनों में यह एक समकालीन कहानी, मानवता के संकटों को सामने लाती है। Part-1 10 min approx Part-2 10 Min approx स्वर इरफ़ान का है और साथ में हमारे साथी मुनीश इसे कई जगहों पर प्रभावकारी बना रहे हैं। अवधि लगभग बीस मिनट.