संडे स्पेशल: आज सुनिए शायदा के ब्लॉग से एक पोस्ट !
आर्ट ऑफ़ रीडिंग में वादे के मुताबिक़ हम हाज़िर हैं अपनी इतवार की ख़ास पेशकश के साथ.
हमने नज़र दौडाते हुए शायदा के ब्लॉग पर मौजूद उनकी पहली पोस्ट को चुना है.
इस पोस्ट को आप मातील्दा नाम के ब्लॉग पर पहले पढ चुके हैं और सराह भी चुके हैं. अब लीजिये इरफ़ान की आवाज़ में इस पोस्ट को सुनिये और अगले इतवार का इंतज़ार कीजिये, जब आपकी भी कोई पोस्ट यहाँ पढी जा रही होगी.
अवधि कोई साढे तीन मिनट है.
डाउनलोड करके सुनने के लिये लिंक यहाँ है।
एक घर, जो हवा में तैरता है
Comments
मुझे तो ऐसा लगता है के दुनिया की हर चीज़ को आपकी आवाज़ में पेश होना चाहिए ताकि बुरी चीज़ भी हम दुनियादारों को दिलकश लगे. शायदा ने प्रोज़ में कविता ही लिक्खी थी. और पोस्ट प्रोडक्शन बाक़माल है. शुक्रअल्हमदुल्लिलाह!
आपने वाकई जान डाल दी है
शायदा जी के लफ्ज़ जैसे जी उठे हैँ-
-- लावण्या
कभी पढ़ने की कला, माईक, रिकार्डिंग आदि पर भी सलाह दें.
आरंभ
बहुत ख़ूबसूरती और कलात्मक तरीक़े से पढ़ा है आपने. बधाई आपको. और शायदा जी को भी.
इरफ़ान भाई, आपने हवा में तैरती आंखों से बरसते शुक्रिया को तो महसूस किया ही होगा सुबह से अब तक कई बार.....।
अरुणेश पठानिया
पाँव रुकते हैं, पंथ चलते हैं !
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पढ़ने की कला की यह प्रस्तुति
किसी साधक को सिद्ध बना सकती है.
मुझे लगता है कि इस आवाज़ में
कंठ नहीं रूह बोलती है...और
जो बोले गये अल्फ़ाज़ हैं ...
वो सही माने में
अपने घर की खबर दे रहे है.
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ऐसी क्रियेटिविटी बड़ी नेमत है.
यहाँ साँसों की तरह आना-जाना लगा रहेगा.
बधाई
डा.चंद्रकुमार जैन
पहल भी खूब, जज्बा भी खूब और लगन के तो कहने ही क्या ?
अफ़सोस है तो एक ही कि हम ऐसा कुछ लिख नहीं पाते जिसे आपकी आवाज़ मिल सके। और शब्दों का सफ़र तो पढ़ने की चीज़ ठहरी .... उसे सुनकर भला लोग क्या करेंगे :)
बहुत बहुत बधाई। जारी रखिये। पहली बार यहां आना हुआ। अब अक्सर होगा। हां, नया कुछ डालें तो मेल कर देंगे तो और भी अच्छा रहेगा.
बहुत उम्दा, बेहतरीन, लाजवाब ख्याल...अपने किस्म का अद्भुत ब्लॉग...जरा मेहनत कर के हमारे जैसे कविता प्रेमियों के लिए 'अंधेरे में' भी बांच दीजिए। और यदि कष्ट न हो तो एक लंबी लेकिन बेहतरीन कविता है देशज पाठ के लिहाज से...भवानीप्रसाद मिश्र की 'घर की याद'...मौका मिले तो इसे भी अपनी आवाज़ में ढाल दें...
एक छोटा-सा सुझाव भी था...कभी आराम से बैठ कर लिखूंगा...फिलहाल इतना ही, साधुवाद
अभिषेक श्रीवास्तव