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Showing posts from June, 2008

संडे स्पेशल:आज सुनिये सुखदेव साहित्य से पीढियों का लुत्फ़

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"मेरी उम्र छियासी हो चुकी है.मैं साहित्यसेवी हूं.मेरी रचनाएँ यहां हैं .आप की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी." सुखदेवजी ने अपने प्रोफ़ाइल में भले ही यह संक्षिप्त सा परिचय दिया है लेकिन उनके अनुभव और उनसे मिलने वाली रोशनी को शायर के शब्दों में यूँ कहना होगा- एक बूढा रह रहा इस शहर में या यूँ कहें एक सूने घर में जैसे कोई रोशनदान है मैं छियासी वर्षीय सुखदेवजी को महज़ अजय ब्रह्मात्मज के पिता के रूप में प्रस्तुत करना उनकी मौलिकता और रचनात्मक उत्साह का उपहास मानता हूँ . ख़ुद उनके ही शब्दों में कहना हो तो शायद कहा जाएगा- तुम क्या खाकर वह लिखोगे जो मैं भोगकर लिख रहा हूँ. लम्बे समय से ब्लॉगजगत में पूरे उत्साह से लगे सुखदेव साहित्य का रुख़ करना जो लोग हेय समझते हैं उनके लिये भी आज पेश है- पीढियों का लुत्फ़ स्वर मुनीश का है । अवधि कोई पाँच मिनट ।

सुनिये "ये कौन सख़ी हैं जिनके लुहू की अशरफ़ियाँ छन-छन-छन-छन"

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अपने हिंदुस्तान में इस तरह की साहित्यिक प्रस्तुतियाँ कहाँ हैं, ये आप हमें बताएंगे। फिलहाल आइये सुनिये फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की एक नज़्म में आर्ट ऑफ़ रीडिंग और मलिका पुखराज को। पुरुष स्वर किसका है ये बात सीडी का फ़्लैप खो जाने से मुझे याद नहीं रही। कोई बताए तो दर्ज कर दूँगा. "ये कौन सख़ी हैं जिनके लुहू की अशरफ़ियाँ छन-छन-छन-छन"

सन्डे स्पेशल में आज : मोहन थाल

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ब्लॉगर निशा की दिशा जरा अलग है जो आपको खोजनी नहीं पड़ती बल्कि भरवां बैंगन, भुने मावे या खड़े मसाले की महक से आप ख़ुद -ब-ख़ुद उस तरफ खींचे चले जाते हैं. इस बार एक अद्भुत चमत्कारी व्यंजन मोहन थाल की सोंधी बेसनी महक हमें निशा मधुलिका जी के ब्लॉग पर बरबस ही खींच लायी है. फिल्म दीवार में विजय ,रवि से कहता है, '' तुम्हारे सब उसूलों को गूंध कर दो वक़्त की रोटी नहीं बनाई जा सकती रवि '' । इसी तरेह बाकी सब ब्लोग्गरों की लफ्फाज़ी से कुल मिलाकर ऐसा कुछ हासिल नहीं हो सकता जैसा निशा जी की व्यंजन विधियों से जिन्हें वाकई देखा, चखा और महसूसा जा सकता है. चाहता था खुद ये पोस्ट पढूं मगर भावुकता के अतिरेक में पढ़ नहीं पा रहा था इसलिए इरफान से आग्रह किया। सो आप सुनें मोहन थाल बनाने का तरीका, जय श्री कृष्ण: जिन हज़रात को को इस डिश के चमत्कारी होने पे शक हो वो ईश्वर के जिस भी रूप को मानते हों उसका नाम ले कर ये डिश बनायें और अपनों-परायों दोनों में बाँट दें और अपना शक दूर कर लें.

सबसे अच्छे दिन

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ये हमारे साथी शरद तिवारी हैं. सुनिये शरद से सबसे अच्छे दिन . अवधि कोई डेढ मिनट. सबसे अच्छे दिन

गोली दाग़ो पोस्टर

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लीजिये सुनिये आलोकधन्वा की एक प्रतिनिधि कविता- गोली दाग़ो पोस्टर . हालाँकि मेरा मानना है कि इसका सबसे अच्छा पाठ ख़ुद आलोकधन्वा ही कर सकते हैं लेकिन हमारे साथी अश्विनी वालिया ने कोशिश की है कि इसके पाठ के साथ न्याय किया जा सके. कितना न्याय हो सका है और हमारी पेशकश कैसी लगी, यह जानने की उत्सुकता रहेगी. अवधि कोई पाँच मिनट. गोली दाग़ो पोस्टर

बंद खिडकियों से टकराकर

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सुनिये गोरख पांडेय की कविता बंद खिडकियों से टकराकर । ये आएंगे अच्छे दिन नाम की ऑडियो सीडी में भी है। स्वर हमारी सहकर्मी पूनम श्रीवास्तव का है.

सुनिये त्रिलोचन की एक ग़ज़ल

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ग़ज़ल के शुरू में आवाज़ ज्योत्सना तिवारी की है और ग़ज़ल पेश कर रहे हैं पंकज श्रीवास्तव । त्रिलोचन की ग़ज़ल " आप कहते हैं तो अपनी भी सुना देता हूँ मैं "

संडे स्पेशल: थोडी-थोडी पिया करो!

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दोस्तो जहाँ एक तरफ़ हम जैसे ब्लॉगर हैं जो महज़ मौज-मेले , दिलजोई और रंगबाज़ी के लिए ब्लॉगिंग किया करते हैं वहां ऐसे दानिशमंदों की भी कमी नहीं जो समाजी भलाई और किसी नेक काज की खातिर इसे एक धारदार औज़ार की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं । ऐसे शानदार लोगों के हम कायल हैं और उनकी इस सोच को सलूट करते हैं । ऐसे ही एक शख्स हैं डॉक्टर प्रवीण चोपडा जो मीडिया के ज़रिये लोगों मे फैली मेडिकल ग़लत फहमियों को दूर करने के मिशन में लगे हैं और उनकी पोस्ट '' थोड़ी - थोड़ी पिया करो ...'' को शायद आपने भी पढ़ा हो , नहीं भी पढ़ा तो कोई हर्ज नहीं हम आपको सुनवाये देते हैं........ आवाज़ मुनीश की है और अवधि कोई पाँच मिनट. डाउनलोड यहाँ से करें.

पत्ता तुलसी का

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ये है राजेश जोशी की कविता "पत्ता तुलसी का" इरफ़ान की आवाज़ में.

संडे स्पेशल: आज सुनिए शायदा के ब्लॉग से एक पोस्ट !

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आर्ट ऑफ़ रीडिंग में वादे के मुताबिक़ हम हाज़िर हैं अपनी इतवार की ख़ास पेशकश के साथ. हमने नज़र दौडाते हुए शायदा के ब्लॉग पर मौजूद उनकी पहली पोस्ट को चुना है. इस पोस्ट को आप मातील्दा नाम के ब्लॉग पर पहले पढ चुके हैं और सराह भी चुके हैं. अब लीजिये इरफ़ान की आवाज़ में इस पोस्ट को सुनिये और अगले इतवार का इंतज़ार कीजिये, जब आपकी भी कोई पोस्ट यहाँ पढी जा रही होगी. अवधि कोई साढे तीन मिनट है. डाउनलोड करके सुनने के लिये लिंक यहाँ है। एक घर, जो हवा में तैरता है

एक दिन आता है!

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सुनिये रघुवीर सहाय की कविता "एक दिन आता है"। आवाज़ इरफ़ान की है। अवधि एक मिनट। डाउनलोड लिंक । इमेज : साभार किमतेलास

दो बाँके

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आज पेश है भगवती चरण वर्मा की कहानी दो बाँके . आवाज़ है हमारी साथी अपर्णा घोषाल की. अवधि कोई पंद्रह मिनट. डाउनलोड करने के लिये लिंक ये रहा .